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कविता

पप्पियों की पीढ़ियाँ

संजय चतुर्वेदी


वे आए
अपने इतिहास को अपनी जमीन पर छोड़कर
कहीं कोई कमरा किराए पर ले
धीरे-धीरे उन्होंने जीत लिए शहर
उनके बच्चों ने
पेट में ही सीख लिया शहर जीतना
और तोड़ डालीं
मिली थीं अगर कुछ मूर्तियाँ उन्हें गर्भ में।

 


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हिंदी समय में संजय चतुर्वेदी की रचनाएँ